वांछित मन्त्र चुनें

ऊर्ण॑म्रदा॒ वि प्र॑थस्वा॒भ्य१॒॑र्का अ॑नूषत। भवा॑ नः शुभ्र सा॒तये॑ ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ūrṇamradā vi prathasvābhy arkā anūṣata | bhavā naḥ śubhra sātaye ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ऊर्ण॑ऽम्रदाः। वि। प्र॒थ॒स्व॒। अ॒भि। अ॒र्काः। अ॒नू॒ष॒त॒। भव॑। नः॒। शु॒भ्र॒। सा॒तये॑ ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:5» मन्त्र:4 | अष्टक:3» अध्याय:8» वर्ग:20» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:1» मन्त्र:4


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (शुभ्र) शुद्ध आचरण करनेवाले राजन् ! आप (सातये) दाय विभाग के लिये (वि, प्रथस्व) प्रसिद्ध कीजिये और हम लोगों के लिये सुखकारी (भवा) हूजिये। हे (ऊर्णम्रदाः) रक्षकों के सहित मर्दन करने और (अर्काः) मन्त्र और अर्थ के जाननेवाले आप लोगो ! (नः) हम लोगों को सम्पूर्ण विद्याओं से सम्पन्न (अभि, अनूषत) कीजिये ॥४॥
भावार्थभाषाः - राजा और राजपुरुष विभाग करके अपने-अपने अंश अर्थात् हिस्से को ग्रहण करें और प्रजाओं के भाग प्रजाओं के लिये देवें ॥४॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे शुभ्र राजँस्त्वं सातये वि प्रथस्व नोऽस्मभ्यं सुखकारी भवा। हे ऊर्णम्रदा अर्का ! यूयं नोऽस्मान्त्सर्वा विद्या अभ्यनूषत ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ऊर्णम्रदाः) य ऊर्णै रक्षकैर्मृद्नन्ति (वि) (प्रथस्व) प्रख्याहि (अभि) (अर्काः) मन्त्रार्थविदः (अनूषत) (भवा) अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (नः) अस्मान् (शुभ्र) शुद्धाचरण (सातये) दायविभागाय ॥४॥
भावार्थभाषाः - राजा राजपुरुषाश्च विभज्य स्वमंशं गृह्णीयुः प्रजाभागाँश्च प्रजाभ्यो दद्युः ॥४॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - राजा व राजपुरुष यांनी करविभागणी करून आपापला भाग ग्रहण करून प्रजेचा भाग प्रजेला द्यावा. ॥ ४ ॥